Aman Mishra

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रुद्र : भाग-८

             वह एक बड़ा-सा कमरा था। एक दीवार पर 'फॉरेंसिक लैब' लिखा हुआ था। कई सारे रसायन मौजूद थे वहाँ। दीवारों पर मानव शरीर के और उसके अंगों का विस्तृत वर्णन लिखा हुआ था। कक्ष के बीचों बीच तीन स्ट्रेचर रखे हुए थे, जिनपर आज सुबह जंगल में मिली लाशों को रखा गया था। उसी कमरे में एक काँच की दीवार थी, जिसके दूसरी ओर कुछ जूनियर साइंटिस्ट अपना काम कर रहे थे। इस तरफ उन लाशों के पास, वरिष्ठ वैज्ञानिक, डॉक्टर वेदप्रकाश शुक्ला खड़े थे और कुछ रिपोर्ट्स पढ़ रहे थे। उनका रंग गोरा था।उन्होंने हल्के नील रंग की शर्ट और काले रंग का पैंट पहना हुआ था। उन्होंने गाढ़े नीले रंग की टाई पहनी हुई थी और एक सफेद रंग का लैब कोट पहना था। उनके लगभग सारे बाल सफेद हो चुके थे। उनकी मूँछ में भी गिने-चुने काले बाल बचे थे। उन्होंने चश्मा पहना हुआ था। उन्हें देखकर कोई भी कह सकता था कि उनकी उम्र लगभग पचपन साल के ऊपर की होगी। उनके चेहरे का तेज उनके ज्ञानी होने का प्रमाण दे रहा था।  
             
            "कहिए डॉक्टर साहब, क्या पता चला इन लाशों से?" विराज ने दरवाजे से अंदर आते हुए कहा। विराज के ठीक पीछे रुद्र भी था।

           "आओ विराज और.........." डॉ. शुक्ला ने रुद्र की ओर इशारा करते हुए कहा।

           "मैं एसीपी रुद्र रघुवंशी।" रुद्र ने डॉ. शुक्ला से हाथ मिलाते हुए कहा।

           "अरे हाँ....! आपको न्यूज़ में देखा था।" डॉ. वेदप्रकाश शुक्ला ने मुस्कुराते हुए कहा।

           रुद्र और विराज, डॉ. शुक्ला के साथ लाशों की ओर बढ़ गए।

           "इन लाशों से जो पता चला है, उससे आपको इस केस में यकीनन मदद मिलेगी।" डॉक्टर साहब ने लाशों की ओर देखते हुए कहा।

          "और वो क्या डॉक्टर साहब?" विराज ने पूछा।

          "ये देखिए, ये इन लाशों पर जगह-जगह टांके लगे हुए हैं।" डॉक्टर साहब ने कहा।

          "लेकिन ये टांके तो कुछ खास जगहों पर हैं, तीनों लाशों पर।" रुद्र ने गौर से देखते हुए कहा।

          "हाँ। क्योंकि इन तीनों के दिमाग, दिल, लिवर और किडनियों को निकाल लिया गया है।" डॉ. शुक्ला ने सपाट स्वर में कहा।

         यह बात सुनते ही रुद्र और विराज बुरी तरह चौंक गए।  

         "मतलब इन अपहरणों का असली उद्देश्य मानव अंगों की तस्करी है?" विराज ने हैरानी से कहा।

         "हाँ। आप लोगों को जल्द से जल्द बचे हुए लोगों को बचाना होगा। मुझे इन लोगों के खून में बेहोशी की दवा मिली है, वह भी भारी मात्रा में। अगर उन लोगों को भी बेहोश रखने के लिए ये दवा दी जा रही है तो उनका बचना भी मुश्किल है। इसलिए उन्हें आजाद कराते ही सीधा अस्पताल में भर्ती कराना होगा।" डॉ. साहब ने चिंतित स्वर में कहा।

          "हमें जल्द से जल्द बाकी लोगों को ढूंढना होगा। पता नहीं ये अभय फोन क्यों नहीं उठा रहा है। ठीक है डॉक्टर साहब, हम चलते हैं।" कहते हुए रुद्र दरवाजे की ओर मुड़ गया। विराज भी रुद्र के पीछे-पीछे चल पड़ा।


            "रुद्र अब क्या करें? अभी तक ऐसा कोई सुराग हाथ नहीं लगा है, जिससे हम बाकी लोगों तक पहुँच सकें।" विराज ने सीढ़ियों से उतरते हुए कहा। 

           "मुझे अभी-अभी विकास का मैसेज आया है, कि अभय का फोन बंद हो गया है। उन्हें कुछ अजीब बात का पता चला है इन लोगों के बारे में। सबसे पहले हम उनसे मिलते हैं।" रुद्र ने गाड़ी की ओर दौड़ते हुए कहा।

          रुद्र और विकास गाड़ी में बैठ गए और वहाँ से सीधा अभय और विकास से मिलने चले गए।










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             "बेवकूफ गधों! लाशों को छिपाया था या प्रदर्शनी लगाकर आए थे? पुलिस उन लाशों तक कैसे पहुँच गयी?" एक काला कुर्ता और जीन्स पहने, घनी दाढ़ी-मूँछ वाले बदमाश जैसी शक्ल के व्यक्ति ने अपने सामने खड़े दो आदमियों पर चिल्लाते हुए कहा। 

               वे दोनों आदमी बुरी तरह से काँप रहे थे। साफ पता चल रहा था, कि उनके डर का कारण उनके सामने कुर्सी पर बैठा वो इंसान था।

               "भ.....भाई मैंने इस रॉकी को बोला था, थोड़ा और अंदर छुपाते हैं लाशों को। इसने ही बोला कि उधर ही ठीक है।" उन दोनों में से एक आदमी ने कंपित स्वर में कहा।

              "न.....नहीं रघु भाई! मैंने बोला था की उधर उन लाशों को गाड़ देते हैं। वो तो ये राजू फावड़ा भूल गया था।" रॉकी ने दूसरे आदमी की ओर इशारा करते हुए कहा।

              "भाई ये झू......." राजू बोलने ही जा रहा था, की उस कुर्सी पर बैठे आदमी ने, जिसका नाम रघु था, खड़े होकर एक जोरदार थप्पड़ राजू के गाल पर जड़ दिया।

             राजू को इस थप्पड़ की बिल्कुल उम्मीद नहीं थी। वह खुद को संभाल न सका और जमीन पर गिर पड़ा। राजू को मार खाता देख रॉकी पहले से भी ज्यादा घबरा गया और कुछ कदम पीछे चला गया।

              "यहाँ पुलिस छानबीन कर रही है और तुम लोगों को बस एक-दूसरे पर इल्जाम लगाना है। एक काम ढंग से नहीं होता तुम लोगों से।" रघु वापस अपनी कुर्सी पर बैठता हुआ बोला।

              तभी कहीं से किसी लड़की के चिल्लाने और दरवाजे को पीटने की आवाज आयी। उस आवाज को सुनते रघु और गुस्से में दिखाई देने लगा।

             "अबे! इस आफत को फिर होश आ गया। तुम दोनों को कहा था लोगों को टाइम पे डोज देने को? अगर इस बार तुम लोगों की वजह से कोई गड़बड़ हुई तो पुलिस को अगली बार तुम दोनों की लाशें मिलेंगी।" रघु ने क्रोध भरे स्वर में कहा।

                "भाई इस बार पक्का कोई गलती नहीं......" रॉकी कह ही रहा था कि रघु की आवाज के कारण रुक गया।

                "चुप! बकवास बंद करो और जाके डोज दो बाकी लोगों को।" रघु ने कहा और फिर अपनी जेब से फोन निकाल कर आराम से बैठ गया। उसने किसी को फोन लगाया और दूसरी ओर से फोन उठने का इंतजार करने लगा।

               "क्या बे! इतना टाइम लगता है क्या फोन उठाने में।" रघु ने सख्त आवाज में कहा।

              "अरे नहीं भाई। वो तो बस ऐसे ही। अपन आपका फोन ना उठाए ऐसा हो सकता हसि क्या?" दूसरी ओर से किसी की चापलूसी भरी आवाज आयी।

             "बस कर! सुन, जाके पता कर पुलिस की छानबीन किधर तक पहुँची। जल्दी बता मुझे" कहते हुए रघु ने फोन काट दिया और टेबल से अपनी गाड़ी की चाभी उठाकर कहीं चला गया।










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              आर्या इस वक्त अपने स्टडी रूम में बैठा हुआ था। वह किसी गहरी सोच में डूबा हुआ था। कमरे में टंगस्टन बल्ब से आ रही मध्यम रोशनी थी। आर्या के सामने टेबल पर एक पुरानी सी तस्वीर रखी हुई थी, जिसे आर्या लगातार देख रहा था और कुछ सोच रहा था। वह तस्वीर किसी कॉलेज के बैच की लग रही थी। उस तस्वीर के ऊपर लिखा हुआ था, जिंदल टेक्निकल इंस्टिट्यूट । उसमें एक लड़के के चेहरे पर एक लाल रंग का गोल बना हुआ था। वह लड़का कोई और नहीं, रुद्र था, और वह तस्वीर आर्या और रुद्र के कॉलेज के समय की तस्वीर थी। उस तस्वीर में आर्या के चेहरे पर उसका वह चोट का निशान नहीं था। आर्या और रुद्र एक-दूसरे के कंधे में हाथ डाले घनिष्ठ मित्रों के समान खड़े थे।
            जबसे आर्या को रुद्र के वापिस आने की खबर मिली है, तबसे वह ज्यादातर अपने स्टडी रूम में बैठा कुछ न कुछ सोचता रहता है। उसने अपना फोन भी बंद कर रखा है। आर्या ने ठान लिया है कि पिछली बार वो सब छोड़ कर चला गया था, लेकिन इस बार चाहे जो हो जाए वो रुद्र से अपनी उस आठ सालों पुरानी बेज्जती का बदला लेकर ही रहेगा। 

             आर्या ने अपनी मुट्ठी भींच ली और एक जोरदार मुक्का टेबल पर दे मारा। उसकी आँखें गुस्से से लाल हो चुकी थीं।

             "अब तू गया रुद्र।" आर्या ने खुदसे बड़बड़ाते हुए कहा और उस कमरे से बाहर निकल गया।









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               रुद्र, अभय, विराज और विकास इस वक्त रुद्र के कैबिन में बैठे हुए थे। रुद्र अपनी कुर्सी पर था और बाकी तीनों उसके सामने बैठे हुए थे।
सब लोगों के व्यवस्थित ढंग से बैठने के बाद अभय ने बोलना शुरू किया, "रुद्र हमने और बाकी टीमों ने सभी गायब हुए लोगों के परिवार वालों से बात की और इससे हमें एक ऐसी बात पता चली है, जो इन सभी लोगों में कॉमन है।" 

             "और वो क्या?" विराज ने अधीरता से पूछा।

             "वो ये की गायब होने के कुछ दिनों पहले इन सभी ने आर. एस. पैथोलॉजी में अपना चेक-अप करवाया था।" इस बार विकास ने कहा।

            "मतलब सभी ने वहाँ ब्लड टेस्ट करवाया था?" विराज ने हैरान होते हुए पूछा।

            "नहीं! पूरे शरीर का टेस्ट करवाया होगा।" रुद्र ने मौन तोड़ते हुए कहा।

            "बिल्कुल सही लेकिन तुझे कैसे पता?" अभय ने हैरान होते हुए पूछा।

            "क्योंकि हमें अभी कुछ देर पहले ही पता चला कि ये अपहरण मानव अंगों की तस्करी के लिए हो रहे हैं। अगर मेरा शक सही है, तो इन सभी लोगों का स्वास्थ्य बिल्कुल अच्छा रहा होगा। तभी इन लोगों को चुना गया।" रुद्र ने गंभीर स्वर में कहा।

             "मतलब उस आर. एस. पैथोलॉजी में कोई तो है, जो इन अपराधियों में शामिल है।" विराज ने कहा।

            "हाँ। मगर एक बात समझ नहीं आ रही है। आखिर ऐसी क्या वजह थी जो इन लोगों ने वहाँ टेस्ट करवाए। कुछ तो खास रहा होगा जिसने इन लोगों को आकर्षित किया होगा।" रुद्र ने सोचते हुए कहा।

           "हाँ, एक बात है। असल में इन सभी लोगों के घर पाँच किलोमीटर के दायरे में हैं। कुछ महीनों पहले श्यामनगर चौक के पास इस आर. एस. पैथोलॉजी का एक कैम्प लगा था। जहाँ इन्होंने लगभग दस हजार रुपए के टेस्ट्स सिर्फ दो हजार रुपयों में किए थे।" अभय ने कहा।

           "ओह! तभी इतने सारे लोग उनके जाल में फँस गए। तो चलो धावा बोलते हैं इन पैथोलॉजी वालों पर।" विराज ने जोश में कहा।

           "नहीं। पहले मैं जाऊँगा अपना चेक-अप करवाने। जरा पता तो चले आखिर मेरे शरीर में चल क्या रहा है।" रुद्र ने मुस्कुराते हुए कहा।

          "अब तेरे शरीर में क्या हो गया?" अभय ने सर खुजाते हुए कहा।

         "अरे! मेरा मतकब मैं वहाँ भेस बदल कर जाऊँगा और पता करूँगा की आखिर इन सब के पीछे है कौन?" रुद्र ने कहा।

         "लेकिन तू ही क्यों? हम भी तो जा सकते हैं।" विराज ने कहा।

         "इसके दो कारण हैं। पहला ये की इस नाटक में मुझे खुद को किडनैप करवाना पड़ेगा। अब हम चारों तो किडनैप हो नहीं सकते। और दूसरा कारण ये है, की मैं तुम तीनों जितना कमजोर नहीं, इसलिए वो लोग मुझे चुन भी लेंगे।" रुद्र ने नजरें नीची करते हुए कहा।

           "मतलब तुझे हमें चिढ़ाने का कोई मौका छोड़ना नहीं है। चल ठीक है, लेकिन हम भी तेरे आसपास ही रहेंगे।" अभय ने कहा।

          "वो तो तम लोग रहोगे ही। मैं अपनी घड़ी में जीपीएस फिट करके जाऊँगा।" रुद्र ने अपनी घड़ी पर हाथ फेरते हुए कहा।

         "लेकिन हमें और क्या करना होगा? थोड़ा डिटेल में बता।" विकास ने कहा।

         "देखो, मैं सबसे पहले वहाँ जाकर उस कैम्प के बारे में पता लगाऊँगा। उसके बाद उस कैम्प में जो डॉक्टर या उनका जो भी स्टाफ था उसकी सारी जानकारी पता करनी होगी। मुझे उम्मीद है इन सबके पीछे उसी का हाथ होगा। कैसे भी करके उससे मेरी रिपोर्ट उस किडनैपर तक पहुँचानी होगी।" रुद्र ने सब समझाते हुए कहा।
    
              "मतलब तू खुद का किडनैप करवाने वाला है? भाई रात को कोई नशा वगैरा किया था  या फिर दिमाग फिर गया है तेरा?" विराज ने रुद्र को घूरते हुए कहा।

             "अब इससे ज्यादा आसान तरीका नहीं है उन लोगों को बचाने का। इससे पहले किसी और को मारा जाए, हमें उन तक पहुँचना ही होगा।" रुद्र ने दृढ़ता से कहा।

             "लेकिन इसमें तुझे खतरा हो सकता है।" अभय ने चिंतित स्वर में कहा।

             "मुझे कोई खतरा नहीं होगा। और तुम लोग भी तो मेरे पीछे-पीछे पहुँच जाओगे।" रुद्र ने आराम से कहा।

            "ठीक है। लेकिन अपना ध्यान रखना।" विकास ने गंभीर होते हुए कहा।

            "और हाँ, गुस्से में आकर उन अपराधियों को मार मत डालना। क्योंकि जब तक तू बेहोश रहेगा, तब तक तेरे लिए खतरा है। लेकिन अगर तुझे हमारे आने के पहले होश आ गया तब तो उन लोगों को सीधा मुर्दाघर भेजना पड़ेगा।" विराज ने माहौल को ठंडा करते हुए कहा।

            विराज की बात सुनकर सभी हँस पड़े। उसके बाद रुद्र ने उन्हें कुछ और बातें समझाई और सभी अपने-अपने घर चल पड़े। अब अगले कुछ दिनों तक उन्हें काफी मेहनत भी करनी थी।








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           क्या रुद्र की योजना सफल होगी? कहीं रुद्र पर कोई बड़ा खतरा तो नहीं आने वाला? आखिर आर्या ने क्या सोचा है? जानने के लिए अगले भाग का इंतजार करें।


                                                               अमन मिश्रा
                                                                     🙏


             

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1 Comments

Shaba

05-Jul-2021 03:31 PM

एक और रोमांच से भरा हुआ अंक। अब रूद्र की योजना कितनी सफल होती है, ये तो बाद में ही पता चलेगा। आखिर आर्या ने भी तो योजना बना ली है। कहानी की लयबद्धता कहीं भी टूटी नहीं है। डिटेलिंग भी शानदार है। आगे के भागों के लिए उत्सुकता है। शुभकामनाऍ॑।

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